त्रिवेणियाँ

१. 43.jpg

गर्व से दमका था जो खैरात की चांदनी फैलाये  
अमावसी की चादर ओढ़े वो चाँद अब शर्माता है

मेरे यार, उधारी के चिराग कब तक रोशन रहेंगे 

२.

गोल, मुलायम फुल्के तेरे आज बस मेरी यादों में सही  
पर तुझ बिन अब भी वैसी ही रोटियाँ सिका करती हैं

कुछ गोल, कुछ मुलायम, तो कुछ फूली फूली हुईं सी

३.

दंगों के मलबे में जो एक हुए थे मस्जिद ओ मंदिर
आओ अब उसी ढेर से एक हस्पताल बनवाया जाये 

सजदे जिसके लिए किये थे, आज उसी को पाया जाये 42.jpg

४.

सोता हूँ कि सपनों में शायद मिल जाए कहीं तू, पर
हर लम्हा-ए-वस्ल1 पर, खुद को जागा हुआ पाया है

अब हर सुबह तेरी जगह तेरे ख्वाब उठाया करते हैं

 

५.

ज़िन्दगी के जिन जिन पन्नों पे तेरा जिक्र है
उन पे यादों के bookmarks लगा के रक्खे हैं

ज़रूरी सबक revise करने में आसानी रहती है

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1वस्ल = Meeting, union

दोहे


गहरी गहरी बात करे, और ऊंचा दाम कमाए  40 (1)
करनी पर जो आन पड़े, सोचे और सकुचाये

माटी सबकी इक है, चाक औ कुम्हार इक,
पानी भर का फर्क है, कुछ क्रूर कुछ नेक.

समय का धर्म बड़ा सरल है, चलता सीध-ए-नाक,
मुड़कर कभी ना देखता, हम कब समझेंगे बात.

जीवन सबका भिन्न है, हैं रहन सहन अनेक, 41.jpg
काल ना कोई भेद करे है, अंत है सबका एक.

जीवन का मोती ढूँढने सब सागर में गोत लगाये,
अपने ज्ञान की नदिया ही, आखिर प्यास बुझाये.

शशि1 के जैसा व्यापारी, हुआ ना अब तक हाय,
रवि की किरनें उधार ले, खुद ही नाम कमाए.

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शशि – Moon

प्यास बरकरार रख - 2

पहला भाग यहाँ / First Part Here

 

हर हर्फ़1 में जो पीड़2 हो
वक़्त गूढ़ गंभीर हो
फीके क्षणों की धार में
थोड़ी हँसी को घोल के  
परिहास3 बरकरार रख
तू प्यास बरकरार रख39.jpg

गुलशन जब बेनूर हो
और वसंत कुछ दूर हो
क्रूर खिज़ाओं4 में डटकर
अपनी आरजूओं के
अमलतास5 बरकरार रख
तू प्यास बरकरार रख

नौ भावों से है बना  
ये ज़िन्दगी का चित्र है
इक भी कम नहीं पड़े
खुद में नवरसों का तू
एहसास बरकरार रख
तू प्यास बरकरार रख

कल  ही कल की नींव था 38.jpg
कल ही कल का सार है 
कभी भी ये भूल मत 
भविष्य को तू साध पर
इतिहास बरकरार रख
तू प्यास बरकरार रख

पहले वार में कहाँ
कटे कभी पहाड़ हैं
हर नदी मगर मिली
अन्तः अपने नदीश6 से
बस, प्रयास बरकरार रख
तू प्यास बरकरार रख

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हर्फ़ - Word
पीड़ - Pain
परिहास - Humour
खिज़ा - Autumn, Decay
अमलतास - A flowering tree (also known as golden shower tree)
नदीश - Sea

प्यास बरकरार रख - 1

 

धूप हो कड़ी तो क्या 36.jpg
तीरगी1 घनी तो क्या
लक्ष्य का अमृत भी तू 
पायेगा पर इतना तो कर
प्यास बरकरार रख
तू प्यास बरकरार2 रख

मंजिलें कभी कभी
अदृश्य3 जो लगें तुझे
तू तनिक आराम कर
एक गहरी सांस भर
आस बरकरार रख
तू प्यास बरकरार रख

राह हो, थकान हो
बाधाएँ तमाम हों 37.jpg
नींद भी गर ले पथिक
जगे हुए ख्वाब संग
रास बरकरार रख
तू प्यास बरकरार रख

हाँ, छूटते हैं आसरे
हाँ, छूटते हैं काफिले
पर सांस छूटने तलक
दिल में हौसलों का तू
वास बरकरार रख
तू प्यास बरकरार रख

बस धड़कने से ही नहीं
दिल हो जाता दिल है
आदमी बने इन्सान
इसीलिए दिल में तू
आभास4 बरकरार रख
तू प्यास बरकरार रख

 

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तीरगी: Darkness
बरकरार रख: Don't let it die
अदृश्य: Invisible
आभास: Feelings

अश्क थामते हैं

 

हाँ मंजिलों में झालरें नहीं लगायीं 34.jpg
लेकिन राहों के चिराग जलाये हैं हमने
जुगनू बनके उजाले फैलाते हैं पर
मकां जलाके रौशनी करने की आदत नहीं

उन सर्द रातों में साथ निभाया हैं
तेज़ बरसातों में साथ निभाया है
पतझड़ में तो खुद विदा ले लेते पर
तूफानों में हमें बिखरने की आदत नहीं

तेरे तगाफुल1 की गर्मियां क्यों चाहिए 
जब तेरे स्पर्श की नरमी ही काफी थी
ज़बां पे मिसरी से पिघलते हैं पर
भट्टियों में लोहों से गलने की आदत नहीं 35.jpg

मैंने खूँ से ख़त नहीं लिखे थे मगर
दिल निचोड़ के वो काग़ज़ी गुलाब रंगे थे
पत्तों पे शबनम2 से फिसलते हैं पर
उफनती नदियों सी बहने की आदत नहीं

फटे होटों से भी बांटी हैं मुस्कुराहटें
महीन टुकड़ों से फिर दिल बुना है
इश्क नहीं अश्क3 थामते हैं अब पर
टीस, घाव, दर्द - दिखाने की आदत नहीं

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तगाफुल: To ignore
शबनम: Dew
अश्क: Tears

 

दे कोई नुस्खा

 

तुझे उम्मीद भी थी और मुझे थी जिद्द भी,31.jpg
न मैं यहाँ से चला न तुम वहां से आ सके

हिज्र1 और विसाल2 के बीच था सिर्फ
पर्दा ए रस्मो रिवाज़ जो हम ना उठा सके

तू आई तो होगी ज़रूर मेरी मजार पे
ऐसा भी क्या की ये वादा भी ना निभा सके

वक़्त, काम, दोस्त, वाल्देन3, समाज
ऐसी झूठी तो तू नहीं कि बहाने बना सके

रहने भी दे यार ये बातें सरहदें4 मिटाने की,
दे कोई नुस्खा5 जो दिलों से दरारें मिटा सके

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हिज्र: Separation/Absence
विसाल: Meeting
वाल्देन: Parents
सरहदें: Borders
नुस्खा: Remedy

कोई है

जब अँधियारा गहराता है
और चाँद कहीं सो जाता है 29.jpg
जब शाम का गहरा साया
हर नयी सहर1 पर छाता है
तब रौशनी का भान लिए
दूधिया फैली चांदनी सा,
कोई तो राह दिखाता है

जब सन्नाटा और ख़ामोशी
ही कान में बजती जाती है
सरगम और संगीत हो चुप
आवाज़ भी थक सी जाती है
तब ग़म को इक साज़ बनाकर
तान छेड़कर, नाद बजाकर
कोई तो सुर में गाता है

जब नज़र दूर तलक जाकर
रूआंसी सी लौट के आती है
कहती है कहीं कुछ और नहीं
चहुँ ओर फकत2 इक उदासी है
तब साँसों की आवाज़ में घुल
और सन्नाटे के शोर में मिल
कोई तो आस बंधाता है

जब वक़्त की चलती रेतघड़ी3 से
हर पल छन-छन के गिरता है 33.jpg
और काल का बहता दरिया भी
कुछ थम-थम कर के चलता है
तब दुःख से भारी लम्हे चुनकर
और यादों की झालर में बुनकर
कोई तो समय कटाता है

जब खुद की ही परछाई
पर की छाया हो जाती है
मुरझायी और झुकी झुकी 
अपनी काया हो जाती है
तब उम्मीद का स्पर्श4 लिए
हिम्मत की डोर बांधकर
कोई तो मुझे चलाता है

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सहर – Morning
फकत – Only
रेतघड़ी – Hourglass
स्पर्श – Touch