आज और कल


हिंद युग्म में पूर्व प्रकाशित

आज कल्पना के गुलशन में
चटकी हैं अगणित कलियाँ,
कल जब काल की गर्मी से
ये सूखा मरुस्थल हो जाएगा
तब तुम मदमस्त निर्झरणी सी
मेरे ख्यालों के सभी उपवन
फिर खिलाने प्रिये आना

आज जग का आकाश भरा है
साधनों के असंख्य तारों से
कल मेरी इच्छा पूर्ति को
जब ये सारे तारे टूटेंगे
तब तुम उन टूटे तारों की
मेरी मांगी अर्जियां बनकर
साथ देने प्रिये आना

आज यौवन के सौष्ठव की
लपटों का चढ़ता सूरज
कल जब ढलती उम्र की
रजनी का तम छाएगा
तब साहस की किरण लिए
पूनम का सौम्य उजाला बन
तम हरने प्रिये आना

आज ध्वनियों का कोलाहल
फैला है जीवन के मेले में
कल मरघट के सन्नाटे में
जब मूक सभी हो जायेंगे
तब तुम कोयल की कूक सी
मेरे अंतर के राग सभी
गुंजित करने प्रिये आना

आज आरोह जो जीवन के
सुरों को ऊंचा किये जाता है
कल इस कालचक्र का अंतिम
अवरोह प्रिये जो शुरू होगा
तब बैठ काल के पुष्पक पर
मुझे जीवन स्त्रोत के शून्य में
सम्पूर्ण करने प्रिये आना

Photo Courtesy: Flickr

No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणियां